وأهرب منك ولو في الخيال | |
لأني أحبك وهما طويلا | |
وحلم بعيني بعيد المنال | |
دعيني أراك هداية عمري | |
وإن كنت في العمر بعض الضلال | |
دعيني أقاوم شوقي إليك | |
فإني سئمت قصور الرمال | |
نحب كثيرا ونبني قصورا | |
وتغدو مع البعد بعض الظلال | |
دعيني أراك كما شئت يوما | |
وإن كنت طيفا سريع الزوال | |
فما زلت كالحلم يبدو قريبا | |
وتطويه منا دروب المحال _________ فاروق جويده |
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